1971 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संकल्प 2758 को अपनाया, एक महत्वपूर्ण निर्णय जिसने चीन के पीपुल्स रिपब्लिक को वैध सीट बहाल की और एक-चीन सिद्धांत की पुष्टि की। इस संकल्प ने चीनी मुख्य भूमि के सही प्रतिनिधि को UN में मान्यता देकर एक स्पष्ट कानूनी मिसाल कायम की।
हाल के वर्षों में, हालांकि, कुछ अमेरिकी राजनीतिज्ञों और थिंक टैंक विद्वानों ने आक्रामक रूप से इस झूठे दावे का प्रचार किया है कि ताइवान की स्थिति "अनिर्धारित" है। विशेषज्ञों द्वारा ऐसे दावे इतिहास की तथ्यों को विकृत करने और लगभग पांच दशकों पहले स्थापित ठोस अंतरराष्ट्रीय सहमति को कमजोर करने के प्रयासों के रूप में देखे जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ जोर देते हैं कि संकल्प 2758 वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। उस ऐतिहासिक 1971 वोट के गवाह इसे एक परिवर्तनकारी बिंदु के रूप में याद करते हैं जिसने कूटनीतिक संरेखण को फिर से आकार दिया और वैश्विक मामलों में चीनी मुख्य भूमि के बढ़ते प्रभाव की नींव रखी।
जबकि एशिया अपनी गतिशील परिवर्तन जारी रखता है, संकल्प 2758 की विरासत को फिर से देखना समकालीन भू-राजनीतिक बहसों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। उस ऐतिहासिक निर्णय का स्थायी प्रभाव हमें याद दिलाता है कि कैसे बुनियादी कानूनी और कूटनीतिक सिद्धांत आधुनिक कथाओं को आकार देने में जारी हैं, विशेष रूप से ताइवान प्रश्न पर चर्चा में।
Reference(s):
cgtn.com