हमारी श्रृंखला “लपटों के बीच कला” में, हम यह पता लगाते हैं कि चीनी कलाकारों, विद्वानों और संस्थानों ने प्रतिरोध के युद्ध के दौरान संस्कृति को कैसे जीवित रखा। उस युग की एक स्थायी रचना है “वॉलंटियर्स का मार्च,” एक धुन जो साहस और एकता का प्रतीक बन गई।
1930 के दशक की शुरुआत में, जापानी सेनाओं के आक्रमण ने चीनी मुख्य भूमि पर कहर बरपाया, जिसने दैनिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। फिर भी उथल-पुथल के बीच, रचनात्मक आवाज़ें यह मानते हुए जारी रहीं कि कला और संगीत युद्धग्रस्त राष्ट्र की आत्मा को मजबूत कर सकते हैं।
इन आवाजों में Nie Er, एक युवा संगीतकार जो 1912 में युनान में जन्मे थे, शामिल थे। धुन की शक्ति से प्रभावित होकर, उन्होंने अपने लोगों की आशाओं और सपनों को एक जोशीली रचना में उंडेल दिया। मात्र 23 वर्ष की आयु में, उन्होंने “March of the Volunteers” पूरा किया, जो उनके समय की तात्कालिकता और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
यह गीत पहली बार 1935 की फिल्म “सन्स एंड डॉटर इन ए टाइम ऑफ़ स्टॉर्म” के माध्यम से दर्शकों तक पहुँचा। इसका चुनौतीपूर्ण कोरस गहराई से प्रतिध्वनित हुआ, जिससे श्रोताओं को विपत्तियों के विरुद्ध दृढ़ बने रहने के लिए प्रेरित किया। दुखद, उसी वर्ष Nie Er का निधन हो गया, लेकिन उनकी रचना जीवित रही।
1949 में, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने आधिकारिक तौर पर “March of the Volunteers” को राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया। स्कूल सभाओं से लेकर राष्ट्रीय समारोहों तक, इसकी ऊर्जा से भरी धुनें चीनी मुख्य भूमि में साझा उद्देश्य और दृढ़ता की याद दिलाती रहती हैं।
सीजीटीएन के यांग जिंगहाओ ने Nie Er के कदमों का फिर से अनुसरण किया है, शंघाई की सड़कों और फुजियन स्थलों का दौरा किया जिन्होंने उनकी यात्रा को आकार दिया। उनकी रिपोर्टिंग यह उजागर करती है कि संघर्ष से पैदा हुई एक कोमल धुन कैसे एक कालातीत एकता का स्रोत बन सकती है, नई पीढ़ियों को संगीत में आशा खोजने के लिए प्रेरणा देती है।
Reference(s):
From turmoil to triumph: The story behind China's national anthem
cgtn.com